Class 10th Science Sent – up Exam 2025 Question Answer
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Class 10th Science Sent – up Exam 2025 Question Answer
Physics – भौतिकी
लघु प्रश्न
- वाहन में पीछे देखने के लिए उत्तल दर्पण को ही क्यों प्रयोग किया जाता है? (80 शब्द)
वाहनों में पीछे देखने के लिए उत्तल दर्पण का उपयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि यह साधारण दर्पण की तुलना में बहुत बड़ा दृश्य क्षेत्र प्रदान करता है। उत्तल दर्पण में वस्तुओं का प्रतिबिंब छोटा, सीधा और आभासी बनता है, जिससे पीछे की अधिक दूरी और अधिक वाहन आसानी से दिखाई देते हैं। इससे चालक सुरक्षित ढंग से लेन बदल सकता है, मोड़ ले सकता है और दुर्घटनाओं की संभावना कम होती है। इसलिए इसे रियर-व्यू मिरर के रूप में सबसे उपयुक्त माना जाता है।
- अंतरिक्ष यात्री को आकाश नीला न दिखकर काला क्यों दिखाई देता है? (80 शब्द)
अंतरिक्ष में वायुमंडल नहीं होता। पृथ्वी पर आकाश इसलिए नीला दिखता है क्योंकि वायुमंडल में उपस्थित वायु-अणु सूर्य के प्रकाश की नीली किरणों का प्रकीर्णन करते हैं। अंतरिक्ष में जब वायुमंडल ही नहीं है, तो सूर्य का प्रकाश बिखरता नहीं और नीली किरणें आँखों तक नहीं पहुँचतीं। इसलिए अंतरिक्ष यात्री को आकाश पूरी तरह काला दिखाई देता है, चाहे सूर्य सामने हो। प्रकाश सीधे आँखों में आता है, फिर भी आसपास का क्षेत्र अंधकारमय रहता है।
- उत्तल लेंस का मुख्य फोकस क्या होता है? (80 शब्द)
उत्तल लेंस का मुख्य फोकस वह बिंदु है जहाँ प्रधान अक्ष के समांतर आने वाली प्रकाश किरणें लेंस से गुजरने के बाद अपवर्तित होकर एक बिंदु पर मिलती हैं। यह फोकस लेंस के दोनों ओर समान दूरी पर होता है। इसे फोकस दूरी (फोकल लेंथ) से मापा जाता है। मुख्य फोकस लेंस द्वारा बनने वाले प्रतिबिंबों के आकार, स्थिति और प्रकार को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसी कारण यह प्रकाशिकी में एक मुख्य अवधारणा है।
- अच्छे ईंधन की दो विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (80 शब्द)
अच्छा ईंधन वह होता है जो कम मात्रा में अधिक ऊष्मा प्रदान करे, अर्थात उसका ऊष्मा मान (Calorific Value) उच्च हो। इसके जलने पर धुआँ, राख या हानिकारक गैसें कम निकलनी चाहिए, ताकि प्रदूषण न बढ़े और वातावरण सुरक्षित रहे। साथ ही ईंधन आसानी से उपलब्ध हो, सस्ता हो, सुरक्षित रूप से संग्रहीत किया जा सके और प्रयोग के समय अधिक जोखिम न हो। इन सभी गुणों के कारण ईंधन उपयोगी व व्यवहारिक माना जाता है।
- फ्लेमिंग के दाहिने हाथ के नियम की व्याख्या कीजिए। (80 शब्द)
फ्लेमिंग का दाहिने हाथ का नियम विद्युत जनित्र (Generator) में उत्पन्न धारा की दिशा ज्ञात करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस नियम के अनुसार दाहिने हाथ की अंगूठा, तर्जनी और मध्यमा उंगलियों को परस्पर लंबवत रखा जाता है। इनमें अंगूठा चालक की गति की दिशा को दर्शाता है, तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को और मध्यमा उंगली उत्पन्न प्रेरित धारा की दिशा को बताती है। इस नियम से करंट की दिशा बिना गणना के आसानी से ज्ञात की जा सकती है।
- विद्युत धारा की तीव्रता क्या होती है? (80 शब्द)
विद्युत धारा की तीव्रता उस मात्रा को कहते हैं, जितना विद्युत आवेश किसी चालक के अनुप्रस्थ क्षेत्र से एक सेकेंड में गुजरता है। इसे सूत्र I=QtI = \frac{Q}{t}I=tQ से व्यक्त किया जाता है। इसकी एस.आई. इकाई एम्पीयर (A) है। यदि किसी चालक से एक सेकेंड में एक कुलॉम्ब आवेश गुजरता है, तो धारा की तीव्रता 1 एम्पीयर मानी जाती है। धारा की तीव्रता यह दर्शाती है कि विद्युत परिपथ में कितनी मात्रा में आवेश प्रवाहित हो रहा है।
- प्रत्यावर्ती धारा (AC) की दो कमियाँ समझाइए। (80 शब्द)
प्रत्यावर्ती धारा की सबसे बड़ी कमी यह है कि इसकी दिशा समय-समय पर बदलती रहती है, इसलिए यह उन कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं है जहाँ एक ही दिशा में लगातार धारा की आवश्यकता होती है, जैसे इलेक्ट्रोप्लेटिंग और इलेक्ट्रोलिसिस। दूसरी कमी यह है कि कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण केवल DC पर ही काम करते हैं, इसलिए AC को पहले रेक्टिफायर द्वारा DC में बदलना पड़ता है जिसमें ऊर्जा की कुछ हानि भी होती है।
- एम्पीयर की परिभाषा लिखिए। (80 शब्द)
एम्पीयर विद्युत धारा की SI इकाई है। जब किसी चालक के अनुप्रस्थ क्षेत्र से एक सेकेंड में एक कुलॉम्ब विद्युत आवेश गुजरता है, तब चालक में प्रवाहित धारा की तीव्रता 1 एम्पीयर कही जाती है। इसे 1A=1 C/s1 \text{A} = 1\, \text{C/s}1A=1C/s द्वारा व्यक्त किया जाता है। एम्पीयर यह बताता है कि परिपथ में विद्युत आवेश कितनी तेजी से प्रवाहित हो रहा है। विद्युत परिपथों और उपकरणों की क्षमता का निर्धारण करने में एम्पीयर महत्वपूर्ण होता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
- उत्तल लेंस द्वारा वास्तविक एवं आवर्धित प्रतिबिंब बनने की क्रिया का स्पष्ट किरण-आलेख बनाइए।
उत्तल लेंस द्वारा वास्तविक तथा आवर्धित प्रतिबिंब का निर्माण
उत्तल लेंस एक अभिसारी (Converging) लेंस होता है, जो उसमें से गुजरने वाली प्रकाश किरणों को एक बिंदु पर लाकर मिलाता है। यह लेंस वस्तु की स्थिति के अनुसार कई प्रकार के प्रतिबिंब बनाता है—वास्तविक (Real), आभासी (Virtual), आवर्धित (Magnified), संक्षिप्त (Diminished) आदि। जब वस्तु लेंस के फोकस (F) और केंद्र (2F) के बीच रखी जाती है, तब उससे बनने वाला प्रतिबिंब वास्तविक, उल्टा और आवर्धित होता है। इसी स्थिति का किरण-आलेख प्रश्न में पूछा गया है।
इस प्रक्रिया को समझने के लिए दो मुख्य किरणों का उपयोग किया जाता है।
पहली किरण प्रधान अक्ष के समांतर चलाई जाती है। यह लेंस से गुजरने के बाद अपवर्तित होकर फोकस से होकर निकलती है।
दूसरी किरण लेंस के केंद्र से होकर भेजी जाती है। यह बिना मुड़े सीधे आगे बढ़ती है।
जब ये दोनों अपवर्तित किरणें लेंस की दूसरी ओर जाकर एक बिंदु पर मिलती हैं, तो उस स्थान पर वास्तविक प्रतिबिंब बनता है। चूँकि वस्तु फोकस और 2F के बीच रखी है, इसलिए मिलने वाली किरणें वस्तु से दूर एक ऐसी स्थिति पर प्रतिबिंब बनाती हैं जो आकार में वस्तु से बड़ा होता है। इसी कारण यह प्रतिबिंब आवर्धित (Magnified) कहलाता है।
वास्तविक प्रतिबिंब हमेशा स्क्रीन पर प्राप्त किया जा सकता है, जबकि आभासी प्रतिबिंब स्क्रीन पर नहीं मिलता। यही वास्तविक प्रतिबिंब की विशेष पहचान है। कैमरा, प्रोजेक्टर, मानव नेत्र आदि उपकरणों में इसी सिद्धांत का उपयोग किया जाता है।
इस प्रकार उत्तल लेंस वस्तु की स्थिति बदलने पर विभिन्न प्रकार के प्रतिबिंब बना सकता है, और फोकस व 2F के बीच वस्तु रखने पर वास्तविक, उल्टा तथा बड़ा प्रतिबिंब बनता है।
- चालक तार का प्रतिरोध किन-किन कारकों पर निर्भर करता है? स्पष्ट कीजिए।
किसी चालक तार का प्रतिरोध (Resistance) वह गुण है जो विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध करता है। प्रत्येक धातु या पदार्थ में प्रतिरोध अलग-अलग होता है और यह कई कारकों पर निर्भर करता है। प्रतिरोध का मान निम्न सूत्र से भी व्यक्त किया जाता है—
R=ρLAR = \rho \frac{L}{A}R=ρAL
जहाँ
R = प्रतिरोध,
ρ (rho) = पदार्थ का विशिष्ट प्रतिरोध,
L = तार की लंबाई,
A = तार का अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल।
अब प्रतिरोध किन कारकों पर निर्भर करता है, इसे अलग-अलग बिंदुओं में समझा जा सकता है—
1. चालक की लंबाई (Length of conductor)
प्रतिरोध चालक की लंबाई के सीधे अनुपाती होता है। अर्थात यदि तार की लंबाई बढ़ाई जाए, तो प्रतिरोध भी बढ़ जाता है। लंबा तार धारा के प्रवाह में अधिक अवरोध उत्पन्न करता है।
2. चालक के अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल (Area of cross-section)
तार के मोटे होने पर उसका प्रतिरोध कम होता है और पतला होने पर प्रतिरोध अधिक हो जाता है। क्योंकि मोटे तार में इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह के लिए रास्ता बड़ा होता है, जिससे धारा आसानी से गुजरती है।
3. पदार्थ का प्रकृति (Nature / Resistivity of material)
विभिन्न पदार्थों का प्रतिरोध अलग-अलग होता है। ताँबा और ऐल्यूमीनियम जैसे धातुओं का प्रतिरोध बहुत कम होता है, इसलिए इन्हें चालक के रूप में प्रयोग किया जाता है। वहीं नाइक्रोम, कांस्टेंटन आदि का प्रतिरोध अधिक होता है, इसलिए इन्हें हीटर, टोस्टर के तारों में प्रयोग किया जाता है।
4. तापमान (Temperature)
धातुओं में तापमान बढ़ने पर प्रतिरोध बढ़ जाता है, क्योंकि गर्म होने पर उनके अणु तेज़ी से कंपन करते हैं और इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह में बाधा उत्पन्न करते हैं।
इसके विपरीत, अधातु (इंसुलेटर) तथा अर्धचालक (semiconductor) में तापमान बढ़ने पर प्रतिरोध कम होता है।
इस प्रकार चालक का प्रतिरोध मुख्य रूप से उसकी लंबाई, मोटाई, पदार्थ के विशिष्ट प्रतिरोध और तापमान पर निर्भर करता है। ये सभी कारक मिलकर किसी भी तार के विद्युत व्यवहार को निर्धारित करते हैं।
Chemistry – रसायन शास्त्र
लघु प्रश्न
- रासायनिक समीकरण के क्या लाभ हैं?
रासायनिक समीकरण किसी अभिक्रिया को सरल और स्पष्ट रूप में दिखाते हैं। इससे पता चलता है कि कौन-कौन से अभिकारक मिलकर कौन-सा उत्पाद बनाएंगे। समीकरण के द्वारा पदार्थों की मात्रा, उनके अनुपात और अभिक्रिया की दिशा आसानी से समझी जा सकती है। संतुलित समीकरण से यह भी पता चलता है कि कितनी मात्रा में पदार्थ की आवश्यकता होगी और कितना उत्पाद बनेगा। इससे समय, श्रम और गणना आसान हो जाती है।
- ब्रेड एवं केकों को फूलाने (उठाने) के लिए बेकिंग पाउडर का उपयोग क्यों किया जाता है?
बेकिंग पाउडर में सोडियम बाइकार्बोनेट होता है, जो गर्म होने पर कार्बन डाइऑक्साइड गैस बनाता है। यह गैस आटे या घोल में छोटे-छोटे बुलबुले बनाती है, जिससे मिश्रण फूलकर बड़ा और स्पंजी हो जाता है। इसी कारण ब्रेड और केक नरम, हल्के और फूले हुए बनते हैं। यदि बेकिंग पाउडर न डाला जाए, तो केक कड़ा, सिकुड़ा और ठीक से न फूलेगा।
- प्रबल क्षार एवं दुर्बल क्षार से आप क्या समझते हैं? प्रत्येक के दो उदाहरण लिखिए।
प्रबल क्षार वे होते हैं जो पानी में पूरी तरह आयनित होकर अधिक मात्रा में हाइड्रॉक्साइड आयन (OH⁻) बनाते हैं। जैसे— सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH), पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड (KOH)।
दुर्बल क्षार पानी में आंशिक रूप से आयनित होते हैं और कम OH⁻ आयन बनाते हैं। जैसे— अमोनियम हाइड्रॉक्साइड (NH₄OH), मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड (Mg(OH)₂)। मजबूत क्षार अधिक संक्षारक होते हैं, जबकि कमजोर क्षार कम क्रियाशील होते हैं।
- कैल्सीनेशन एवं क्षरण में क्या अंतर है?
कैल्सीनेशन वह प्रक्रिया है जिसमें धातु के अयस्क को हवा की अनुपस्थिति में गर्म किया जाता है, ताकि उसमें मौजूद नमी और अस्थिर पदार्थ निकल जाएँ। यह धातु को शुद्ध करने की विधि है।
क्षरण (Corrosion) धातुओं का वातावरण की नमी, हवा या रसायनों से प्रतिक्रिया कर धीरे-धीरे नष्ट होना है। जैसे— लोहे पर जंग लगना।
एक धातु-शोधन की प्रक्रिया है, जबकि दूसरा धातु का नुकसान है।
15. सह संयोजक बंधन कितने प्रकार के होते हैं | कितने प्रकार के होते हैं और कैसे बनते हैं?
कवलैंट बंध तीन प्रकार के होते हैं—एकल, द्वि-बंध और त्रि-बंध। ये बंध तब बनते हैं जब दो परमाणु अपने बाह्य कक्षा के इलेक्ट्रॉन आपस में साझा करते हैं ताकि उनकी बाहरी परत भरकर स्थिरता प्राप्त हो सके। एकल बंध में एक इलेक्ट्रॉन युगल, द्वि-बंध में दो इलेक्ट्रॉन युगल तथा त्रि-बंध में तीन इलेक्ट्रॉन युगल साझा किए जाते हैं। यह बंध मुख्यतः अधातुओं के बीच बनता है और अणु को स्थिर बनाता है।
16. साबुनीकरण क्या है?
सैपोनिफिकेशन वह प्रक्रिया है जिसमें किसी एस्टर की अभिक्रिया सोडियम हाइड्रॉक्साइड जैसे क्षार से कराई जाती है। इस अभिक्रिया में एस्टर टूटकर साबुन (सोडियम नमक) और अल्कोहल बनाता है। यह प्रक्रिया साबुन बनाने की मूल विधि है। वनस्पति तेल या वसा को क्षार के साथ गर्म करने पर फैटी एसिड का नमक यानी साबुन तथा ग्लिसरॉल प्राप्त होता है। इसलिए इस पूरी अभिक्रिया को सैपोनिफिकेशन कहा जाता है।
- ब्यूटेनोन और एथेनॉल का संरचनात्मक सूत्र
ब्यूटेनोन (C₄H₈O) एक कीटोन है जिसका संरचना सूत्र CH₃–CH₂–CO–CH₃ होता है। इसमें कार्बोनिल समूह (CO) मध्य में स्थित होता है। एथेनॉल (C₂H₅OH) एक अल्कोहल है जिसका संरचना सूत्र CH₃–CH₂–OH होता है। इसमें हाइड्रॉक्सिल समूह (-OH) अंतिम कार्बन से जुड़ा होता है। दोनों पदार्थ कार्बनिक यौगिकों की अलग-अलग श्रेणियों—कीटोन और अल्कोहल—से संबंधित हैं।
- लघु और दीर्घ आवर्त कितने होते हैं?
आधुनिक आवर्त सारणी में कुल सात आवर्त होते हैं। इनमें पहले तीन आवर्त—प्रथम, द्वितीय और तृतीय—लघु आवर्त कहलाते हैं क्योंकि इनमें तत्वों की संख्या कम होती है। चौथा, पाँचवाँ, छठा और सातवाँ आवर्त दीर्घ आवर्त कहलाते हैं क्योंकि इनमें तत्वों की संख्या अधिक पाई जाती है। इस प्रकार आवर्त सारणी में 3 लघु आवर्त और 4 दीर्घ आवर्त होते हैं, जो तत्वों के गुणों को क्रमबद्ध रूप से दर्शाते हैं।
दीर्घ प्रश्न
- उदासीनीकरण अभिक्रिया क्या है ? उदाहरण सहित समझाइए।
उदासीनीकरण अभिक्रिया वह प्रक्रिया है जिसमें एक अम्ल (Acid) और एक क्षार (Base) परस्पर अभिक्रिया करके लवण (Salt) और जल (Water) बनाते हैं। इस अभिक्रिया में अम्ल H⁺ आयन तथा क्षार OH⁻ आयन प्रदान करता है। दोनों आयन मिलकर पानी बनाते हैं। इसलिए अंतिम विलयन का स्वभाव न तो अम्लीय होता है और न ही क्षारीय, बल्कि मध्यम (Neutral) हो जाता है। इसी कारण इस प्रक्रिया को Neutralization कहा जाता है।
अम्ल और क्षार के गुण एक दूसरे को समाप्त कर देते हैं। अम्ल खट्टे होते हैं और नीले लिटमस को लाल करते हैं, जबकि क्षार कड़वे होते हैं और लाल लिटमस को नीला करते हैं। जब दोनों को मिलाया जाता है, तो ये गुण समाप्त हो जाते हैं और एक नया पदार्थ यानी लवण बनता है।
उदाहरण:
यदि हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) को सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH) के साथ मिलाया जाए तो अभिक्रिया होती है—
HCl + NaOH → NaCl + H₂O
यहाँ
- NaCl = साधारण नमक (लवण)
- H₂O = जल
यह अभिक्रिया उदासीनीकरण का एक उत्तम उदाहरण है।
उपयोगिता:
- पेट में अधिक एसिड बनने पर एंटासिड दी जाती है, जो क्षार होती है और अम्ल को उदासीन करती है।
- खेतों की अम्लीय मिट्टी में चूना मिलाकर उसे उपजाऊ बनाया जाता है।
- कीट के काटने पर एसिड/बेस का उपयोग दर्द कम करने के लिए किया जाता है।
इस प्रकार उदासीनीकरण अभिक्रिया हमारे दैनिक जीवन में बहुत उपयोगी है और कई समस्याओं को हल करने में मदद करती है।
- मेंडलीफ की आवर्त सारणी के क्या लाभ हैं?
मेंडलीफ की आवर्त सारणी रसायन विज्ञान के इतिहास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। दिमित्री मेंडलीफ ने तत्वों को उनके परमाणु द्रव्यमान और रासायनिक गुणों के आधार पर व्यवस्थित किया। इस व्यवस्था ने वैज्ञानिकों को तत्वों को समझने और नए तत्व खोजने में बहुत सहायता दी। उसकी आवर्त सारणी के कुछ प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:
1. तत्वों का व्यवस्थित वर्गीकरण
मेंडलीफ ने सभी ज्ञात तत्वों को एक सारणीबद्ध रूप में इस प्रकार रखा कि समान गुणों वाले तत्व एक ही समूह में आ गए। इससे तत्वों को याद रखना और पढ़ना आसान हुआ।
2. समान गुणों की पुनरावृत्ति स्पष्ट हुई
उन्होंने बताया कि समान रासायनिक गुण निश्चित अंतराल पर दोहराए जाते हैं। इसी सिद्धांत को आवर्त नियम (Periodic Law) कहा गया। यह रसायन विज्ञान के लिए एक बड़ा आधार बना।
3. अज्ञात तत्वों के लिए स्थान छोड़ा
मेंडलीफ का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने उन तत्वों के लिए भी जगह छोड़ी जो उस समय खोजे नहीं गए थे।
उन्होंने उनके गुण भी पहले से बता दिए थे। बाद में जर्मेनियम, गैलिएम, स्कैंडियम आदि तत्व मिले, जिनके गुण लगभग वही थे, जैसा मेंडलीफ ने बताया था। इससे उनकी सारणी की विश्वसनीयता बढ़ी।
4. तत्वों के गुणों की भविष्यवाणी
उनकी सारणी देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता था कि किसी तत्व के रासायनिक और भौतिक गुण कैसे होंगे। यह रसायन विज्ञान के अध्ययन में बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ।
5. सुधार और आधुनिक सारणी की नींव
हालाँकि मेंडलीफ की सारणी में कुछ कमियाँ थीं, पर उसकी व्यवस्था ने वैज्ञानिकों को आधुनिक आवर्त सारणी बनाने में बहुत मदद दी। आज की आधुनिक सारणी परमाणु संख्या पर आधारित है, पर उसकी नींव में मेंडलीफ का योगदान सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।
मेंडलीफ की आवर्त सारणी ने तत्वों को समझने में क्रांति ला दी। इसके द्वारा न केवल तत्वों के गुण स्पष्ट हुए बल्कि नए तत्वों की खोज भी संभव हुई। इसलिए यह रसायन विज्ञान के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
Biology – जीवविज्ञान
21. श्वसन एवं दहन में अंतर
श्वसन (Respiration) और दहन (Combustion) दोनों ही ऊष्माक्षेपी प्रक्रियाएँ हैं, लेकिन इनमें मुख्य अंतर हैं।
- प्रक्रिया का नियंत्रण: श्वसन एक जैविक प्रक्रिया है जो जीवित कोशिकाओं के अंदर होती है और एंजाइमों द्वारा नियंत्रित होती है। इसके विपरीत, दहन एक अजैविक प्रक्रिया है जिसके लिए उच्च ताप की आवश्यकता होती है और यह अनियंत्रित होती है।
- ऊर्जा की मुक्ति: श्वसन में ऊर्जा अनेक छोटे चरणों में मुक्त होती है और ऊर्जा का एक बड़ा भाग ATP (एडेनोसिन ट्राइफॉस्फेट) के रूप में संचित होता है। दहन में, ऊर्जा एक ही चरण में ऊष्मा और प्रकाश के रूप में अत्यधिक तीव्रता से मुक्त होती है। तापमान: श्वसन सामान्य शारीरिक तापमान पर होता है, जबकि दहन के लिए पदार्थ को उसके ज्वलन ताप तक गर्म करना आवश्यक है।
22. विषमपोषी से आप क्या समझते हैं
विषमपोषी (Heterotrophs) वे जीव होते हैं जो अपना भोजन स्वयं संश्लेषित नहीं कर सकते और अपने पोषण (भोजन) के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अन्य जीवों पर निर्भर रहते हैं।
मुख्य विशेषताएँ
- निर्भरता: विषमपोषी अपने भोजन के लिए जटिल कार्बनिक पदार्थों का सेवन करते हैं, जिन्हें वे सरल पदार्थों में तोड़कर ऊर्जा प्राप्त करते हैं। ये जीव ऊर्जा के लिए अनिवार्य रूप से स्वपोषी (Autotrophs) जैसे हरे पौधों द्वारा तैयार किए गए भोजन पर निर्भर होते हैं।
- उदाहरण: सभी जंतु (Animals), अधिकांश जीवाणु (Bacteria) और कवक (Fungi) विषमपोषी होते हैं।
- पोषण के प्रकार: विषमपोषण के प्रमुख प्रकारों में प्राणीसमभोजी (Holozoic) (जैसे मनुष्य), मृतोपजीवी (Saprophytic) (जैसे कवक), और परजीवी (Parasitic) शामिल हैं।
23. लसीका और उसके कार्य लिखे –
लसीका (Lymph) एक हल्का पीला तरल है जो रक्त प्लाज्मा के ऊतकों के रिक्त स्थानों में रिसने से बनता है। यह लसीका तंत्र में बहता है।
लसीका के मुख्य कार्य (लगभग 80 शब्द):
- प्रतिरक्षा: यह लिंफोसाइट्स (WBCs) से भरपूर होता है, जो रोगाणुओं को नष्ट करके शरीर को संक्रमण से बचाता है।
- तरल संतुलन: यह ऊतकों से अतिरिक्त तरल और अपशिष्ट पदार्थों को एकत्र करके वापस रक्त परिसंचरण तंत्र में पहुँचाता है, जिससे शरीर में तरल संतुलन बना रहता है।
- वसा अवशोषण: यह छोटी आँत में विशेष वाहिकाओं (लैक्टियल) के माध्यम से पचे हुए वसा का अवशोषण करके रक्त में पहुँचाता है।
24. नेफ्रॉन की संरचना (Structure of Nephron)
नेफ्रॉन (Nephron) वृक्क (Kidney) की संरचनात्मक और कार्यात्मक इकाई है। प्रत्येक वृक्क में लगभग दस लाख नेफ्रॉन होते हैं। नेफ्रॉन की मुख्य संरचना को दो प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है: मैल्पीगी काय (Malpighian Body) और वृक्क नलिका (Renal Tubule)।
